Sunday, September 4, 2011

अमृतमय लीला रस चख कर


सच कहता हूँ नटवर नागर
नहीं छोड़ते तुम अपना कर
पर ये भाव रंग हैं नटखट
विरह गीत गाते घर जाकर 


 तुम करूणा सागर हो गिरिधर
  कृपा तुम्हारी है नित सब पर
सहज तुम्हारे दरसन करना 
 अमृतमय लीला रस चख कर  


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
४ सितम्बर 2011 
  

2 comments:

Rakesh Kumar said...

तुम करूणा सागर हो गिरिधर
कृपा तुम्हारी है नित सब पर
सहज तुम्हारे दरसन करना
अमृतमय लीला रस चख कर

"निर्मल मन जन सो मोहि पावा
मोहि कपट छल छिद्र न भावा"

आपका मन निर्मल है,सो आपको प्रभु दरसन
और उनकी अमृतमय लीला रस चखना भी
सहज है.आपके निर्मल हृदय से निकले
उद्गार सहज और मनोहारी होते हैं.

मेरे ब्लॉग पर दरसन देकर और अत्यंत
सारगर्भित टिपण्णी करके आपने मुझे
धन्य और निहाल कर दिया है.
मेरा विश्वास कई गुणा बढ़ गया है.

आपके द्वारा प्रेषित दोनों वीडियो भी देखने का
मौका मिला. आपका उत्साह,सद् प्रयास
और फिल्मांकन अविस्मरणीय और हृदयहारी
है.मैं और मेरी पत्नी की आपको व आपकी
समस्त टीम को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ.

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...





आदरणीय अशोक जी
सादर सस्नेहाभिवादन !

आपके ब्लॉग पर पहुंच कर आनन्द आ गया …
तुम करूणा सागर हो गिरिधर
कृपा तुम्हारी है नित सब पर
सहज तुम्हारे दरसन करना
अमृतमय लीला रस चख कर


विदेश में रहने के उपरांत आप अपने संस्कार , अपनी विरासत को हृदय में रचाए-रमाए हैं …
लेखनी का भी पावन सदुपयोग कर रहे हैं , यह सचमुच प्रसन्नता की बात है !
बहुत बहुत आभार !

अपको सपरिवार
बीते हुए हर पर्व-त्यौंहार सहित
आने वाले सभी उत्सवों-मंगलदिवसों के लिए
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार