Wednesday, September 7, 2011

आकर तेरे द्वार



श्याम प्रभु के साथ में
मौन मलय माधुर्य
सरल स्नेह का सार हो
धरा रहे चातुर्य

हे कान्हा
मैं प्रेम से
करूँ नित्य आभार
 वो पाया 
जो सार है
आकर तेरे द्वार

अशोक व्यास
३१ जनवरी १९९६ को लिखी
 ७ सितम्बर २०११ को लोकार्पित          

3 comments:

Rakesh Kumar said...

हे कान्हा
मैं प्रेम से
करूँ नित्य आभार
वो पाया
जो सार है
आकर तेरे द्वार

आपकी सुन्दर प्रस्तुति से मुझे श्रीमद्भगवद्गीता
के ये स्वर प्रस्फुटित होते लग रहे हैं

'यो मामेवमसम्मूढो जानाति पुरुषोत्तमम्
स सर्वविद्भजति मां सर्वभावेन भारत'

सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.

Ashok Vyas said...

राकेशजी
जय श्री कृष्ण
सादर, साभार!

मधुर मौन
सुमिरन का माखन,
मनमोहन से
क्या बोले मन?

सत्य सनातन
कृपा का आंगन
प्रेम का सावन
जय नंदनंदन

अशोक व्यास

Rakesh Kumar said...

प्रिय अशोक जी,
सादर नमन
आपके पावन मधुर वचन
करते हैं मेरा शोक हरण
मनमोहन को करके वरण
किया साधन भवसागर तरण

जय नन्द नंदन,जय नन्द नंदन.