Wednesday, September 14, 2011

उन्नत पथ ध्यान तुम्हारा है


मन भागमभाग करे कान्हा
इत-उत जाए
फिर थक जाए
जो मिले तुम्हारे दरसन में
वह चैन 
कहीं भी ना पाए

तुम गोवर्धन धारण करके 
ज्यूं इन्द्रप्रकोप मिटाते हो
तुम प्रेम पगी मुरली अपनी
वृन्दावन मधुर सुनाते हो

मन को ऐसा वर दो कान्हा
वह करे न
जिस पर पछताए
उन्नत पथ ध्यान तुम्हारा है
इसे शरण
तुम्हारी मिल जाए

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१७ नवम्बर २००६ को लिखी
१४ सितम्बर २०११ को लोकार्पित       
   

1 comment:

Rakesh Kumar said...

मन को ऐसा वर दो कान्हा
वह करे न
जिस पर पछताए
उन्नत पथ ध्यान तुम्हारा है
इसे शरण
तुम्हारी मिल जाए


आप तो ज्ञानी भक्त होने की मंजिल को
अति शीघ्रता से प्राप्त करने की तरफ बढ़
रहे हैं,अशोक जी.आपकी कुछ पोस्टों पर
नहीं जा पाया हूँ.आपके आदेशानुसार मैंने
नई पोस्ट 'चार प्रकार के भक्तों'पर जारी
की है.अपना आशीर्वाद अवश्य दीजियेगा
मेरे ब्लॉग पर दर्शन देकर.