कृपा दृष्टि से
उठा श्याम ने
ऐसा करतब किया
उठा मुझको
पहुंचाया छींके तक
पर मटके की ओर
बढ़ा जब हाथ
तो सहसा
उड़ी मटकिया
और उसके पीछे पीछे उड़ता
गोल-गोल चक्कर खाता मैं
झोपडिया में
ग्वाल बाल
हँसते ताली दे
देख रहे थे यह कौतुक
फिर कान्हा के ही संकेत
रुका मटका
रुक टंगा हवा में मैं भी
पर
माखन तक
अब भी मेरी
पहुँच नहीं थी
मन ही मन कान्हा ने पूछा
'अब जो गिरे, फूटे धरती पर
माखन से यह भरी मटकिया
निकले मक्खन,
तुम जो गिरे
तो क्या निकलेगा?
फिर कान्हा ही बोला हँस कर
प्रेम निकल आएगा तुमसे
पगले तुझमें प्रेम है मेरा
भरा लबालब
मगन ध्यान में
करके मुझको
भाग गए हैं कान्हा के संग गोप-ग्वाल सब
जान रहा
मेरे हिस्से का मक्खन तो
मुख पर लिपटा है
है इतना माखन कि जिससे
जीवन भर माधुर्य रहेगा
२९ अप्रैल २००४ को लिखी
१ जुलाई २०१० को लोकार्पित
1 comment:
aap to kamaal ka likhte hain , mann ko chu kar hum kavita mein bh jate hain.....
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