किसको ध्याऊँ
किसको गाऊँ
अब तुमको मैं
क्या बतलाऊँ
जब तक मैं हूँ
उसे ना पाऊँ
फिर भी खुद को
बहुत बचाऊँ
वो ही है सार
वो ही आधार
भूल उसे
रोया हर बार,
पर क्या बोले
तन के तार
खुश होता मैं
सत्य नकार
वह गोपाल
वह नंदलाल
उसका सुमिरन
नित्य संभाल
अमृतमय
हो जाए भाल
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२ दिसंबर १९९४ को लिखी
१५ जुलाई २०१० को लोकार्पित
1 comment:
व्यास जी, बहुत सुन्दर!
उस को भी मैं क्या जानूँ,
बस प्रभु प्रभु ही कहना जानूँ
जय श्री कृष्णा!
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