Thursday, July 15, 2010

अमृतमय हो जाए भाल


किसको ध्याऊँ
किसको गाऊँ
अब तुमको मैं
क्या बतलाऊँ
जब तक मैं हूँ
उसे ना पाऊँ
फिर भी खुद को
बहुत बचाऊँ

वो ही है सार
वो ही आधार
भूल उसे 
रोया हर बार,
पर क्या बोले 
तन के तार
खुश होता मैं
सत्य नकार

वह गोपाल
वह नंदलाल
उसका सुमिरन
नित्य संभाल
अमृतमय
हो जाए भाल

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२ दिसंबर १९९४ को लिखी
१५ जुलाई २०१० को लोकार्पित

1 comment:

Ravi Kant Sharma said...

व्यास जी, बहुत सुन्दर!

उस को भी मैं क्या जानूँ,
बस प्रभु प्रभु ही कहना जानूँ
जय श्री कृष्णा!