Saturday, July 10, 2010

दिव्य काल की हर अंगड़ाई


कभी कभी सब सुप्त रहे
सन्नाटे में संताप जगे
 
कभी नए संकल्पों के
सृजनशील अलाप जगे

दिखलाते हो 
नित्य धूप और छाँव कन्हाई
तुमसे जाग्रत
दिव्य काल की हर अंगड़ाई 

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१४ मयी २००४ को लिखी
१० जुलाई २०१० को लोकार्पित

1 comment:

Sunil Kumar said...

sundar abhivyakti, subhkamnayen