श्री कृष्ण नाम लगे प्यारा
बहती आये अमृत धारा
घनश्याम शरण पाई जबसे
अपना अपना है जग सारा
मोहन के मीठे वचन मगन
बंशी दिखलाए दिव्य स्वपन
नित श्याम सलोना मुख दीसे
वृन्दावन वासे है अब मन
हर्ष और उल्लास जगे
जब मनमोहन की प्यास जगे
कण कण में आनंद धार बहे
हर क्षण कान्हा का रास लगे
प्रेम और विश्वास जगे
मोहन का मंगलवास जगे
हर नाम सुनूं यमुनातट पर
और प्रीत भरा आकाश लगे
अशोक व्यास
२८ नवम्बर १९९४ को लिखी
१३ जुलाई २०१० को लोकार्पित
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