Saturday, July 3, 2010

भरो लबालब कृष्ण प्रेम से अपना अंतस



महिमा गाओ बस ठाकुर की
                                करो ना दूजी बात
जो भी बोलो, उससे बोलो
                           नित्य वही है साथ


आनंद की अनुभूति को चखो
उसका स्वाद अपने साथ रखो

बिना किसी को बताये
बिना किसी को जताए
 फल जब पक जाता है
डाली से गिर जाता है
 
भरो लबालब कृष्ण प्रेम से अपना अंतस 
नित्य मौन में सुनो, स्वयं से उसका ही यश
 
अशोक व्यास 
न्यूयार्क, अमेरिका
२ और ३ मयी २००४ को लिखी कवितायेँ 
शनिवार ३ जुलाई २०१० को लोकार्पित


डाली से गिर जाए

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