एक दो तीन चार
हम तो हैं कान्हा के यार
पांच छः साथ आठ
प्रेम खोल देता हर गाँठ
नौ दस ग्यारह बारा
नहीं कोई कान्हा सा प्यारा
तेरह चौदह पंद्रह सोलह
कृष्ण कृपा क सजा हिंडोला
सत्रह अठारह उन्नीस बीस
मधुरातिमाधुर मैय्या की टीस
इक्कीस बाईस तेईस चोइस
आलोकित नटवर से चहुँदिस
पच्चीस छब्बीस सत्ताईस अट्ठाईस
ऊखल बंधा स्वयं जगदीश
उन्न्त्तीस टीस इकत्तीस बत्तीस
उन्नत है नतमस्तक सीस
तैंतीस चोंतीस पैंतीस छतीस
श्याम विरह की प्यारी टीस
सैंतीस अडतीस उनचालीस चालीस
नंदलाल माय मन होवे निस
अशोक व्यास
४ मई २००४ को लिखी
७ जुलाई २०१० को लोकार्पित
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