भेद मिटा सारे
पनघट पर
एक सखी हँस कर यूँ बोली
जल-नभ-पर्वत-हर पथ कान्हा
जप तप तीर्थ हर व्रत कान्हा
लगे लिखाई भी उसकी ही
पढ़े अगर मेरा ख़त कान्हा
पलक किवड़िया खुली रहे री
सोवत कान्हा, जागत कान्हा
अंग अंग से हंसी उडाये
झूठ-मूठ में रोवत कान्हा
अशोक व्यास
१२ मयी २००४ को लिखी
६ जुलाई २०१० को लोकार्पित
1 comment:
व्यास जी इसी प्रकार कृष्ण-रस पिलाते रहें।....... जय श्री कृष्णा
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