हे प्रभु
छीन लो यह सहायता सूत्र सारे
आने दो मुझे
मेहनत कर कर के
भंवर के पार
ढूँढने दो मुझे
हर बार
नया हल
यह क्या
कि जाना मुझे हो पार
और
और कोई और चलाये पतवार
ढाल नहीं
तलवार बनाना सीखूं
लेकर तुम्हारा नाम
यह क्या कि सुरक्षा में सिमटा
करूं यात्रा
देख ही न पाऊँ संसार
हे प्रभु
आने दो शेर के सामने
तब ही जाऊंगा
नहीं हूँ में सियार
होने तो दूं
जितना हो सकता मेरा विस्तार
पार कर थमाए हुए आकार
हे प्रभु
प्रार्थना यही है
ना करूं स्वीकार कोई दीवार
बहूँ निरंतर
बन प्रेम और श्रद्धा की धार
अशोक व्यास
३ दिसंबर १९९४ को लिखी
१७ जुलाई २०१० को लोकार्पित
2 comments:
वाह ………………गज़ब का चिन्तन्।
मेरे सभी शब्द छोटे ही रह जायेंगे, आपके इस चिंतन के सामने!
! जय श्री कृष्णा !
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