Friday, June 24, 2011

पथ दरसाना


पथ दरसाना
आगे बढ़ाना
उचित समझो
तो दिलवाना
उपलब्धियों का
नया खज़ाना

पर चरण अपने
कभी न छुडाना
मैं तुम्हारा ही हूँ
मैने तो ये माना

अशोक व्यास
१४ सितम्बर २००९ को लिखी
२४ जून २०११ को लोकार्पित            

2 comments:

Rakesh Kumar said...

अशोक जी,
सादर प्रणाम.
परमात्मा के चरणों की शरण मिले,यही जीवन की सर्वोच्च उपलब्धि है.आपके इन सुन्दर उद्गारों को नमन

पर चरण अपने
कभी न छुडाना
मैं तुम्हारा ही हूँ
मैने तो ये माना

Rakesh Kumar said...

अशोक जी,
सादर प्रणाम.
परमात्मा के चरणों की शरण मिले,यही जीवन की सर्वोच्च उपलब्धि है.आपके इन सुन्दर उद्गारों को नमन

पर चरण अपने
कभी न छुडाना
मैं तुम्हारा ही हूँ
मैने तो ये माना