Thursday, June 9, 2011

कान्हा का ध्यान



करता हूँ आभार प्रकट
पर भाव बदल जाता झटपट
मन संतोष छिटक देता
देखे है मांगें उलट-पुलट

ये नहीं हुआ, वो नहीं हुआ
क्यूं असर नहीं करती है दुआ
लगता था सब कुछ पाया है
जब सुमिरन रस एक बार छुआ


फिर से कान्हा का ध्यान धरूँ
उसकी शोभा का मान करूँ
वो जैसे रक्खे, रहूँ सदा
और लीला रस का गान करूँ

जय श्री कृष्ण

२५ अक्टूबर २००९ मुखरित
९ जून २०११ सबको समर्पित   

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