Monday, June 13, 2011

कान्हा मेरे शाश्वत साथी


मन को पवन की एक
लहर उड़ा ले जाती
सैर कराती
स्वपन दिखाती
संभावनाओं की खेती
करवाती
इस बीच
कान्हा की स्मृति
जाग्रत सतह पर से 
सरक जाती

फिर मूल की स्मृति
जब जाग जाती
पुकारता हूँ कातरता से
कहाँ हो, कान्हा मेरे शाश्वत साथी!

जय श्री कृष्ण

२५ अगस्त २००९ को लिखी
१३ जून २०११ को लोकार्पित         

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