Saturday, June 25, 2011

कान्हा कहीं छोड़ मत जाना


जीवन भर का साथ निभाना
कान्हा कहीं छोड़ मत जाना
गिरने पर संभाल लेते हो
संभल चलूँ तब भी संग आना


तुम से गौरव, तुम से वैभव
तुमसे मंगलमय हर कलरव
कान्हा तुम अविनाशी, चिन्मय
तुम अक्षय आनंद का उद्भव

प्रेम प्रसार तुम्हारा सुमिरन 
शीतल, शांति सतत मनमोहन
सार सांस में दिखा रहे तुम
करूणामय, शाश्वत मधुसूदन

दिव्य द्वार की देहरी,अपरिमित विस्तार
दूजापना मिटाय के, पावन 'एक' श्रृंगार

ॐ जय श्री कृष्ण

अशोक  व्यास
२८ अगस्त २००९ को लिखी
२५ जून २०११ को लोकार्पित    

             

1 comment:

Rakesh Kumar said...

ओम् जय श्री कृष्ण
सुन्दर अभिव्यक्ति.
कान्हा के प्रेमरस में डूबी हुई.