Thursday, November 4, 2010

चल कान्हा की बंशी चुराएँ

 
चल कान्हा की बंशी चुराएँ
नटखट को हम आज खिजाएँ
वो कदम के तले जो आये
पेड़ चढ़ें हम जीभ दिखाएँ

पर बंशी कान्हा बिन क्या है
उसके बिना रात-दिन क्या है

हम तो उसको लाड लड़ाएं
वो रूठे तो उसे मनाएं
नंदनंदन के मन जो भये
हम तो वही चाल अपनाएँ

अशोक व्यास
१० जनवरी २००६ को लिखी
४ नवम्बर २०१० को लोकार्पित

3 comments:

Deepak chaubey said...

दीपावली के इस पावन पर्व पर आप सभी को सहृदय ढेर सारी शुभकामनाएं

Randhir Singh Suman said...

दीपावली की हार्दिक शुभकामनाये

nilesh mathur said...

बहुत सुन्दर!
आपको और आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामना!