Wednesday, November 17, 2010

जो कान्हा का साथ दे

 
श्याम सहारे चल सखी
करें लहर से बात
पार करेंगे हर भंवर
थामे कान्हा हाथ

पावन, सुन्दर सरस है
मनमोहन मुस्कान
गया मेरा सर्वस्व ही
सुन मुरली की तान

मुक्ति माखन हाथ ले
कान्हा चला लुटाय
जो कान्हा का साथ दे
वो नित माखन खाय

श्याम सुन्दर की चाकरी
बस वो ही कर पाय 
छोड़ रहट, जो नितप्रति
कान्हा पीछे जाय
 
 
अशोक व्यास 
न्यूयार्क, अमेरिका
५ जून २००४ को लिखी गयी
१७ नवम्बर २०१० को लोकार्पित

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