हम आज समग्रता से
अपनी पूर्णता को अपनाएंगे
या इस अपार वैभव को
कल पर टाल जायेंगे
अगर हम कल-कल करते जायेंगे
तो सूखे- सूखे ही निकल जायेंगे
विवशता को नहीं देना है
स्थाई-अस्थाई स्थान
हम क्यूं क्षुद्र बने, हमारी
सारी धरती, सारा आसमान
यह कविता नहीं सत्य है
सत्य का स्वर है
आपके ध्यान में है अमृत
वरना सब नश्वर है
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१५ जून २००४ को लिखी
२१ नवम्बर २०१० को लोकार्पित
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