Sunday, November 21, 2010

यह कविता नहीं सत्य है

 
हम आज समग्रता से
अपनी पूर्णता को अपनाएंगे
या इस अपार वैभव को
कल पर टाल जायेंगे

अगर हम कल-कल करते जायेंगे
तो सूखे- सूखे ही निकल जायेंगे

विवशता को नहीं देना है
स्थाई-अस्थाई स्थान
हम क्यूं क्षुद्र बने, हमारी
सारी धरती, सारा आसमान

यह कविता नहीं सत्य है
सत्य का स्वर है
आपके ध्यान में है अमृत
वरना सब नश्वर है
 

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१५ जून २००४ को लिखी
२१ नवम्बर २०१० को लोकार्पित

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