Friday, November 19, 2010

आदि-अंत रहित आनंद की धारा





 
दिन उगते ही
ठाकुरजी का ध्यान
जागे उल्लास
बजे सुन्दरतम की तान

दिन अवसरों के उपहार लाये
कर्मयुक्त संतोष सृजन सार सिखाये

अहा
इस दिन को अपना सर्वश्रेष्ठ दिन बनाएं
जैसा बनने का सपना है
आज ही बन जाएँ

प्रसन्न रहें, माधुर्य बढायें
समन्वित सार गुनगुनाये

जिसकी करते हैं आराधना
उसे अपना संगी बनाएं

इस दिन, इस क्षण
द्वन्द्वातीत हो जाएँ

एक जो चरम है
एक जो परम है

उसके चरणों में
नतमस्तक हो जाएँ

उसे कर्म नृत्य में
अपने संग बुलाएं

हर क्षण की ताल पर
हर सांस की उछल पर

समर्पित लचीलेपन के साथ
सौंपे स्वयं को उसके हाथ

उसके निर्देश पर नृत्य हमारा हो
आदि-अंत रहित आनंद की धारा हो
 
 
अशोक व्यास 
न्यूयार्क, अमेरिका
१९ नवम्बर २०१०, शुक्रवार




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