श्याम से सम्बन्ध अपना
क्या रहा
कैसे रहा
और
क्यूं रहा
सोचते सोचते
लगा
सोच से परे है श्याम
पर सोच को आलोकित कर देता है
२
श्याम तुम मेरे आराध्य हो
मेरे सखा हो
मेरे स्वामी हो
प्रश्न पूछ कर
लगा सम्बन्ध को सीमित कर दिया
अनजाने में
सांसों में
बोध दमका
समग्रता से बोल उठा वह
'श्याम तुम तो मेरे सर्वस्व हो'
३
दिशा दिशा में
हर एक क्षण में
सांस सांस में
हर एक शब्द में
एक चेतना ज्योतिर्मय जो
वही श्याम है
श्याम ना केवल, स्वामी, सखा
ना बंधू,बांधव
श्याम मेरा सर्वस्व है
श्याम मेरा सर्वस्व है
सर्वत्र श्याम ही श्याम है
एक जो है
नित्य निरंतर
वही मोर मुकुटधारी
मुरली वाला श्याम स्वरुप है
जय हो
जय श्री कृष्ण
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
८ नवम्बर २०१०
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