Tuesday, May 24, 2011

कान्हा संग नौका विहार है


बंशीधर छवि सब कुछ वारूँ
जो कुछ भी जीता, सब हारूँ
मिले तो मंगल, छुपे तो है छल
बस केशव की बात निहारूं

ध्यान धरूं पर कुछ न पुकारूं
सुन्दरतम का और संवारूं 
छूए कहीं मैला न होवे
सोच श्याम छवि और निहारूं

कान्हा संग नौका विहार है
जीवन का सम्पूर्ण सार है
चाहे जो नदिया के पार है
नहीं उतरना अबकी बार है


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२४ मई २०११ को लोकार्पित
पंक्तियाँ १४ जून २००८ की         

1 comment:

Rakesh Kumar said...

कान्हा संग नौका विहार है
जीवन का सम्पूर्ण सार है
चाहे जो नदिया के पार है
नहीं उतरना अबकी बार है

vah! ji vah! bahut achcha nauka vihar hai Ashok bhai.
Nauk vihar karte karte mere blog par bhi to aayen n ek bar,Kanha ko lekar.