कान्हा के सौ रूप हैं, हर एक रूप अनूप
वो बरखा बनता कभी, कभी बने है धूप
चल कान्हा की बांसुरी, छू कर देखें आज
कहाँ छुपा अमृत सरस, पता करें वो राज
मुझमें मेरापन वही, वही मेरा विस्तार
चलो आज कह ही दिया, कान्हा मेरा यार
लम्बी यात्रा ना सही, अनुभूति एक पाँव
जहाँ जुड़ा सम्बन्ध जी, वहीं मिलेगी छाँव
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
६ मई 2011
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