एक बिंदु पर
सजे चेतना
सुन्दर नृत्य जगाये
स्पंदन आनंद भरे
उल्लास उगाते
प्रभु सुमिरन से आये
कोलाहल के बीच मौन है
नित्य खेलता हुआ कौन है
उस अनंत को
अर्पित तन मन
जो सब खेल रचाए
अशोक व्यास
रामेश्वरम के शबरी लाज में
३० दिसंबर १९९४ को लिखी पंक्तियाँ
आज १ मई २०११ को न्यूयार्क, अमेरिका से लोकार्पित
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