Sunday, May 1, 2011

नित्य खेलता हुआ कौन है


एक बिंदु पर
सजे चेतना 
सुन्दर नृत्य जगाये

स्पंदन आनंद भरे
उल्लास उगाते
प्रभु सुमिरन से आये

कोलाहल के बीच मौन है
नित्य खेलता हुआ कौन है

उस अनंत को
अर्पित तन मन
जो सब खेल रचाए


अशोक व्यास
रामेश्वरम के शबरी लाज में 
३० दिसंबर १९९४  को लिखी पंक्तियाँ
आज १ मई २०११ को न्यूयार्क, अमेरिका से लोकार्पित         

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