Tuesday, May 10, 2011

प्रेम का सावन


उन्नत रहना
प्रेम मगन मन
साथ तुम्हारे
गुरु कृपा धन

फिर जब जाओ
अपने आँगन
बरसो बन कर
प्रेम का सावन

श्रद्धा और समन्वय साथ
उसको अर्पित सब दिन रात


अशोक व्यास
२५ जून २००८ को लिखी
१० मे २०११ को लोकार्पित           

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