गले लगा कर छुप गए
कहाँ प्रभु श्रीनाथ
ढूंढ रहे व्याकुल नयन
वही प्रेम के हाथ
नदी लहर पर खेलते
श्वेत कपोत अनेक
ऐसे हर्षित हो गए
श्याम प्रभु को देख
उड़ा संग ले जा रहे
ये पंछी जिस धाम
वहां श्याम का वास है
छोड़ गए जो थाम
केंद्र नयन का हो रहा
फव्वारे का उद्गम
बूँद बूँद में बज रही
श्याम नाम की सरगम
अहा रूप कैसा दीपे
फव्वारे के बीच
झलक दिखाने आ गए
श्रीनाथ जी रीझ
अपने इस सौभाग्य पर
कैसे हो विश्वास
कौन जतन कर नित रहूँ
श्रीनाथ का दास
सुन्दर श्याम स्वरुप की शोभा अनुपम पावन
जय केशव, गिरिधारी, जय मनमोहन मनभावन
जय श्री कृष्ण
अशोक व्यास
२१ मई १९९७ को जयपुर में लिखी पंक्तियाँ
३ मई २०११ को न्यूयार्क से लोकार्पित
No comments:
Post a Comment