Tuesday, May 3, 2011

कैसे हो विश्वास



गले लगा कर छुप गए
कहाँ प्रभु श्रीनाथ
ढूंढ रहे व्याकुल नयन
वही प्रेम के हाथ

नदी लहर पर खेलते 
श्वेत कपोत अनेक
ऐसे हर्षित हो गए
श्याम प्रभु को देख

उड़ा संग ले जा रहे
ये पंछी जिस धाम
वहां श्याम का वास है
छोड़ गए जो थाम

केंद्र नयन का हो रहा
फव्वारे का उद्गम
बूँद बूँद में बज रही
श्याम नाम की सरगम

अहा रूप कैसा दीपे
फव्वारे के बीच
झलक दिखाने आ गए
श्रीनाथ जी रीझ

अपने इस सौभाग्य पर
कैसे हो विश्वास
कौन जतन कर नित रहूँ
श्रीनाथ का दास

सुन्दर श्याम स्वरुप की शोभा अनुपम पावन
जय केशव, गिरिधारी, जय मनमोहन मनभावन

जय श्री कृष्ण

अशोक व्यास
२१ मई १९९७ को जयपुर में लिखी पंक्तियाँ
                                 ३ मई २०११ को न्यूयार्क से लोकार्पित                      

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