उसकी कृपा से
छू लिया
यह बिंदु
जिसमें भेद है
उस पार का,
उसकी कृपा से
गा रहा
यह सिन्धु
जिसमें सार
अक्षय प्यार का
उसकी कृपा से
बोल में
माधुर्य खन-खन
कर रहा,
उसकी कृपा से
हर एक क्षण से
अमृत जैसा सावन
झर रहा,
वह एक अनादि
व्याप्त है जो
धरती में. आकाश में
हो गान
उसकी
महिमा का
हर शब्द में, हर सांस में
अशोक व्यास
न्यूयार्क
१० अप्रैल १९९७ को लिखी
२ मई २०११ को लोकार्पित
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