Friday, May 20, 2011

कान्हा में रम जाऊं


अनुभव सार लिए कान्हा संग रास रचाऊँ
जहा जहां भी छला गया, उसको बिसराऊँ

यह कैसी लीला है प्रभु की क्या बतलाऊँ 
सब तजने को जब तैयार, तभी सब पाऊँ

मौन मगन मुस्काऊँ 
कान्हा में रम जाऊं

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
जून २४, २००८ को लिखी
२० मई २०११ को लोकार्पित    
     

2 comments:

Rakesh Kumar said...

मौन मगन मुस्काऊँ
कान्हा में रम जाऊं

आपका मौन अदभुत है.आपकी इच्छा उत्कृष्ट
व अनुपम है.कान्हा में रमना मंगलकारी है.

काश! ऐसा भाव मुझे में भी जाग्रत हो.
आपकी पोस्ट पढ़ना मंगलकारी है.

Rakesh Kumar said...

मौन मगन मुस्काऊँ
कान्हा में रम जाऊं

आपका मौन अदभुत है.आपकी इच्छा उत्कृष्ट
व अनुपम है.कान्हा में रमना मंगलकारी है.

काश! ऐसा भाव मुझे में भी जाग्रत हो.
आपकी पोस्ट पढ़ना मंगलकारी है.