(१९९४ और १९९५ में आकाशवाणी, जोधपुर से L T C लेकर मैं और मेरा मित्र लक्ष्मण व्यास
अपने अपने परिवार के साथ दक्षिण यात्रा पर गए थे, दोनों के बच्चे छोटे छोटे थे
१६ बरस बाद, बच्चे बड़े हो गए हैं
पर १ जनवरी १९९५ को विवेकानंदपुरम, कन्याकुमारी में लिखी गयी इन पंक्तियों
को पढ़ते हुए लगता है, ये पंक्तियाँ अब भी मुझसे बड़ी हैं,
प्रेम और मंगल कामनाओं से साथ, आपके साथ बांटने का आनंद ले रहा हूँ)
हर दिन लिख कर
पक्का करता
सबक प्रेम आनंद का,
नित उसके सुमिरन में रमता
जो है
लाला नन्द का,
हर दिन श्याम नाम का सिंचन
निर्मल, सुन्दर, उज्जवल हो मन
स्वर बन पाऊँ
मैं भी कोई
दिव्य प्रेम के छंद का,
हर दिन लिख लिख
पीता हूँ मैं
सबक प्रेम आनंद का
वो ही प्यारा
वो ही न्यारा
कृष्णमयी
हो पाऊँ सारा
भंवरा बन कर पाता जाऊं
स्वाद प्रेम मकरंद का
हर दिन लिख कर पक्का करता
सबक प्रेम आनंद का
अशोक व्यास
७ अगस्त २०१० को न्यूयार्क, अमेरिका से लोकार्पित
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