Wednesday, August 25, 2010

रोम रोम में कान्हा गाये


वह उमंग है
वह तरंग है
गाता वो ही
अंग अंग है

उसकी धुन में
एक लगे सब
सुन्दर, मधुमय
उसका रंग है


वह अद्भुत आनंद बिछाए
कण कण उसका ध्यान कराये 

मुग्ध हुआ महसूस करूँ मैं
रोम रोम में कान्हा गाये 
अशोक व्यास
७ मार्च १९९५ को लिखी
२५ अगस्त २०१० को लोकार्पित

4 comments:

Udan Tashtari said...

बहुत सुन्दर!

Asha Joglekar said...

बहुत सुंदर भाव रोम रोम में कान्हा गाये ।

Ravi Kant Sharma said...

अति सुन्दर भाव.....
बाल वधू सा मन मेरा
चंचल कोमल चितवन....

शिवम् मिश्रा said...

एक बेहद उम्दा पोस्ट के लिए आपको बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है यहां भी आएं !