Tuesday, August 10, 2010

बहे प्रेम सागर अविराम


हर दिन देखूं 
बाट तुम्हारी
तुम संग 
आनंद किरणें सारी 
उतर रहे आल्हाद लिए तुम
सत्य की स्वर्णिम याद लिए तुम

सांस सांस में 
करे उजाला
मैं गाऊँ
आये नंदलाला

कहे कोई 
गोकुल का ग्वाला
गायों का
अनुपम रखवाला

रक्षक, स्वामी
अन्तर्यामी
बनूँ तुम्हारा
मैं अनुगामी

गा गा 
राधे कृष्ण मुरारी
सुन्दर कर लूं 
धरती सारी

बहे प्रेम सागर अविराम
कृष्ण सखा को कोटि प्रणाम


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
११ दिसंबर १९९४ को लिखी
१० अगस्त २०१० को लोकार्पित

1 comment:

Ravi Kant Sharma said...

कृष्ण सखा मेरा भी कोटि-कोटि प्रणाम!