Monday, August 30, 2010

उजियारे मन में अपनापन

 
अमृत बंधन
अनुपम वंदन
नित्य सखा का
नित अभिनन्दन

झूमे तन मन
खुश घर आँगन
बरस रहा है
कृपा का सावन

उसका होकर
कैसी ठोकर
हर कण सुन्दर
हर पग पावन

दिव्य बंधू संग
पुलकित अंग अंग
उजियारे मन में
अपनापन

हँस हँस गा ले
उसे बुला ले
प्रेम लुटाये
नन्द का नंदन

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
 ३० दिसंबर २००६ को लिखी
३० अगस्त २०१० को लोकार्पित

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