अमृत बंधन
अनुपम वंदन
नित्य सखा का
नित अभिनन्दन
झूमे तन मन
खुश घर आँगन
बरस रहा है
कृपा का सावन
उसका होकर
कैसी ठोकर
हर कण सुन्दर
हर पग पावन
दिव्य बंधू संग
पुलकित अंग अंग
उजियारे मन में
अपनापन
हँस हँस गा ले
उसे बुला ले
प्रेम लुटाये
नन्द का नंदन
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
३० दिसंबर २००६ को लिखी
३० अगस्त २०१० को लोकार्पित
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