वह
जो सर्वत्र है
उसको प्रणाम
पत्र लिखता
अपनापन छूने
हर दिन उसकी नाम
हे कृष्ण
हे गोविन्द
हे गोपाल,
गुंजायमान करों
ह्रदय में
भक्ति ताल,
रस श्याम अनुराग का
छ्लछ्लाये
आनंद नगरी में बे सुध
मुझे भगाए
श्याम चर्चा में मन
इतना रम जाए
श्रीहरि सुमिरन बिना
कुछ और ना भाये
अशोक व्यास
२६ फरवरी १९९५ को माउन्ट आबू में लिखी
रविवार, २२ अगस्त २०१० को लोकार्पित
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