Sunday, August 22, 2010

रस श्याम अनुराग का


वह
जो सर्वत्र है 
उसको प्रणाम
पत्र लिखता
अपनापन छूने
हर दिन उसकी नाम

हे कृष्ण
हे गोविन्द
हे गोपाल,
गुंजायमान करों
ह्रदय में
भक्ति ताल,

रस श्याम अनुराग का
छ्लछ्लाये
आनंद नगरी में बे सुध
मुझे भगाए
श्याम चर्चा में मन
इतना रम जाए
श्रीहरि सुमिरन बिना 
कुछ और ना भाये 

अशोक व्यास
२६ फरवरी १९९५ को माउन्ट आबू में लिखी
रविवार, २२ अगस्त २०१० को लोकार्पित

No comments: