Friday, August 13, 2010

आनंद आल्हाद


खेलना है
सांवरे के संग
उसकी ओर भागे
अंग-प्रत्यंग

कान्हा की ओर दौड़ने का उल्लास
सुन्दर गतिमान स्थिरता में निवास

गूंजे मुरली की निर्मल तान
चेतना में गाये आनंद ध्यान

रोम रोम सुने कान्हा का नाद 
पोर पोर में झरता आनंद आल्हाद 


अशोक व्यास 
१७ दिसंबर १९९४ को लिखी 
१३ अगस्त २०१० को लोकार्पित 

1 comment:

Ravi Kant Sharma said...

व्यास जी, बहुत सुन्दर प्रस्तुति,
मन आह्लादित हुआ।