खेलना है
सांवरे के संग
उसकी ओर भागे
अंग-प्रत्यंग
कान्हा की ओर दौड़ने का उल्लास
सुन्दर गतिमान स्थिरता में निवास
गूंजे मुरली की निर्मल तान
चेतना में गाये आनंद ध्यान
रोम रोम सुने कान्हा का नाद
पोर पोर में झरता आनंद आल्हाद
अशोक व्यास
१७ दिसंबर १९९४ को लिखी
१३ अगस्त २०१० को लोकार्पित
1 comment:
व्यास जी, बहुत सुन्दर प्रस्तुति,
मन आह्लादित हुआ।
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