रोज अलग पकवान बना कर
प्रभु को भोग लगाऊँ
पर सब वनस्पतियाँ उसकी हैं
ये तो भूल ही जाऊं
मैं प्रभु का हूँ
मेरा सब कुछ अर्पित उनको
तरह तरह से
अपने मन को नित यह याद दिलाऊँ
अशोक व्यास
२ दिसंबर १९९४ को जब लिखी थी, कन्याकुमारी की यात्रा पर था
आज १७ अगस्त २०१० को लोकार्पित
1 comment:
सत्य अनुभूति!
मेरी अंतर आत्मा की, ज्योति भी तू ही तू है॥
जय श्री कृष्णा....
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