Tuesday, August 17, 2010

अर्पित


रोज अलग पकवान बना कर
प्रभु को भोग लगाऊँ

पर सब वनस्पतियाँ उसकी हैं
ये तो भूल ही जाऊं

मैं प्रभु का हूँ
मेरा सब कुछ अर्पित उनको

तरह तरह से
अपने मन को नित यह याद दिलाऊँ 

अशोक व्यास
२ दिसंबर १९९४ को जब लिखी थी, कन्याकुमारी की यात्रा पर था
आज १७ अगस्त २०१० को लोकार्पित

1 comment:

Ravi Kant Sharma said...

सत्य अनुभूति!
मेरी अंतर आत्मा की, ज्योति भी तू ही तू है॥
जय श्री कृष्णा....