वहां से हिलते ही
बिखर जाता
दृश्य,
खो जाते
बांसुरी, गायें, मोरपंख
वह
हंसता तो है
सूरज में
गाता भी है
पवन में,
पंछियों की बोली में
पर
ढूंढता हूँ
उसके प्रेमद्वार की चाबी
खा लेने
ढेर सारा
आनंद माखन
कृष्ण!
ओ कृष्ण!
पुकार कर कृष्ण नाम
भीगती हैं जड़ें
तना नई आश्वस्ति ले
पहुंचेगा फलों तक
टपकेंगे रसीले फल
नई नई तरह से
खिलेगा मौन में
नाम तुम्हारा
अशोक व्यास
४ मार्च १९९५ की लिखी
२४ अगस्त २०१० को लोकार्पित
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