कृष्ण नाम की नगरी है
प्रभु प्रेम से भरी गगरी है
चलूँ छलकता प्यार लिए
नमन हज़ारों बार लिए
घट-घट व्यापी का अवलंबन
कृपा उसी की सारा जीवन
बहूँ , उसी का सार लिए
उसी दिशा की धार लिए
जिससे
पग पग प्रकट हुआ वह मुस्काये
जिससे
पग पग कृष्ण प्रेम रस गहराए
जय श्री कृष्ण
अशोक व्यास
१२ मार्च १९९५ को लिखी
२० अगस्त २०१० को लोकार्पित
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2 comments:
कृष्ण प्रेम से भरी सुन्दर रचना।
प्रेमरस से पगी बढ़िया रचना...आभार
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