Thursday, August 12, 2010

तेरे होने को जिए बिना




मैं नहीं हूँ
बस यही सीखना है

तू है
तू ही तू है

रमा कर यह बोध
बैठूं, सोऊँ, चलूँ या भागूं

एक सा आनंद
अपने से प्रकट होता 
विस्तृत बढ़ती आभा 

तू है
तू ही तू है

तेरे होने को जिए बिना 
पतझड़ का पत्ता हूं मैं

गिरने दे, बिखरने दे
संवरने दे
जड़ो से तने तक आते विश्वास में 

तू है
तू ही तू है

पवन गीत में
सुन सुन तुझे 

झूमूं, गाऊँ 
बस इतना चाहूं 

मैं नहीं तू
तू है
तू ही तो है

अशोक व्यास 
न्यूयार्क, अमेरिका 

१४ दिसंबर १९९४ को लिखी कविता
१२ अगस्त २०१० को लोकार्पित

1 comment:

Ravi Kant Sharma said...

जीवन के वास्तविक सत्य को
बहुत सुन्दर शब्दों में ढ़ाला है.......शुक्रिया!
मैं नहीं, बस तू ही तो है!