Wednesday, August 11, 2010

नए लगते हैं कहे हुए शब्द



ईश्वर!
गुफा में नहीं
बीच लोगों के
मिलना है तुमसे
इस तरह कि
कोई स्वर
कोई आघात
तोड़ ना पाए
मेरा तुम्हारा साथ


ईश्वर!
भला क्या मिले तुम्हें
मेरी प्रार्थना, याचना, समर्पण से

मिलते मुझे ही
गति, तृप्ति, आनंद

ईश्वर!
माँ के बाल गूंथते बच्चे सा
मैं नन्ही समझ की कलम से
तुम्हारी हथेली पर
रच देता कुछ भी

सहते
उत्पात मेरा
मुस्कुरा कर
दयालु तुम

ईश्वर 
नाटक नहीं
परदे के पीछे से
देखनी है
पूरी तैय्यारी
मेक-अप, मंच- सज्जा,
ध्वनि-प्रकाश व्यस्था,
पात्रों की असलियत
 
ना ईश्वर
दर्शक-दीर्घा से नहीं
पास बैठ सूत्रधार के
देखना है अब
नाटक तुम्हारा

ईश्वर
बात हो चुकने के बाद
बैठ मौन चादर पर
नए लगते हैं
कहे हुए शब्द
सुनता हूँ कुछ देर
यह जो नयापन
क्या इसे
बढ़ा नहीं सकते तुम ईश्वर


अशोक व्यास
४ दिसंबर १९९४ को लिखी पंक्तियाँ
११ अगस्त २०१० को लोकार्पित, मेरी विशेष प्रिय कविताओं में से एक


No comments: