चल कान्हा की बंशी चुराएँ
नटखट को हम आज खिजाएँ
वो कदम के तले जो आये
पेड़ चढ़ें हम जीभ दिखाएँ
पर बंशी कान्हा बिन क्या है
उसके बिना रात-दिन क्या है
हम तो उसको लाड लड़ाएं
वो रूठे तो उसे मनाएं
नंदनंदन के मन जो भये
हम तो वही चाल अपनाएँ
अशोक व्यास
१० जनवरी २००६ को लिखी
४ नवम्बर २०१० को लोकार्पित
3 comments:
दीपावली के इस पावन पर्व पर आप सभी को सहृदय ढेर सारी शुभकामनाएं
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाये
बहुत सुन्दर!
आपको और आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामना!
Post a Comment