Thursday, May 12, 2011

रसमयता का मांग रहा उपहार श्याम से


रसमयता का मांग रहा उपहार श्याम से
सोचूँ, कैसे हो सचमुच में प्यार श्याम से
एकाकीपन जटिल, कुटिल और छली बड़ा
अडिग रखे जो, मांगू वह आधार श्याम से
भ्रमित हुआ मन, खालीपन उपजाए है
जब चूका है ध्यान मेरा इस बार श्याम से
क्यों मेरा विश्वास फिसलता है मुझ से
जुड़ा हुआ है गर मेरा एक तार श्याम से


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
अप्रैल ८, २००८   की पंक्तियाँ
१२ मई २०११ को लोकार्पित 

3 comments:

Rakesh Kumar said...

रसमयता का मांग रहा उपहार श्याम से
सोचूँ, कैसे हो सचमुच में प्यार श्याम से

अशोक जी 'गोपी' भाव से ओतप्रोत है आपकी यह सुन्दर कृति.गोपियाँ भी तो श्याम का प्यार ही मांगती रहती हैं.आपकी भक्तिपूर्ण प्रस्तुति को हृदय से नमन.
आपने मेरे ब्लॉग पर आकर मुझे कृतार्थ कर दिया.आप जैसी पवित्र आत्मा से परिचय होना तो मेरे ऊपर ईश कृपा ही है.आपके ब्लोग्स को मैंने फोलो किया हुआ है.आप चाहें तो आप भी मेरे ब्लॉग को फोलो कर सकते हैं.परन्तु,मेरा विनम्र निवेदन है की आप मेरी पिछली पोस्टों पर भी दर्शन अवश्य दें.आपका आभारी हूँगा.

Rakesh Kumar said...

Ashok ji,where is my comment?

Ashok Vyas said...

I couldn't post Kavita on May 13th and then, I noticed, they deleted May 12th Poem, today, I noticed the poem is back without comment.