मन मौन नगर चल आज अभी
मनमोहन बंशी तान लिए
अधरों पर रस मुस्कान लिए
दे रहे निमंत्रण करूणा कर
मन निर्मल, निश्छल, निश्चलता
मन प्रेम, समर्पण, कोमलता
ले साथ सभी को एकाकी
चल छोड़ जगत के काज सभी
मन मौन नगर चल आज अभी
छू आज केंद्र का स्पंदन
पा ले अनुनाद परम ओ मन
विस्तार अपार बुलाता है
शाश्वत सुर सहज जागाता है
तज मोह-लोभ, अभिमान सकल
कर अनंत गौरव गान सरल
चल धरें द्वैत गंगा धरा
तज दें खुद ही बंधन सारा
कान्हा कर सांस की रास अभी
है महा मौन में वास अभी
जय श्री कृष्ण
अशोक व्यास
न्यूयार २३ अप्रैल २००८ को लिखी
१६ मई २०११ को लोकार्पित
1 comment:
मन मौन नगर चल आज अभी
मनमोहन बंशी तान लिए
अधरों पर रस मुस्कान लिए
दे रहे निमंत्रण करूणा कर
अब क्या कहूँ अशोक जी 'मौन' का जादू सिर चढ़कर बोल रहा है.'बंशी की तान' और चितचोर की 'मधुर मुस्कान' का निमंत्रण सुनाई पड़ रहा है.मन आनन्दसागर में गोते लगा रहा है.अदभुत है आपकी रसमय भक्ति की शानदार अभिव्यक्ति.
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