Saturday, May 21, 2011

तुम्हें सौंप कर अपना मन


जैसा भी होता है वातावरण
तुम ही तो बनाते हो क्षण क्षण
ना हो असंतोष विपरीत बात पर
क्यूं ठहर नहीं पाता ये प्रण

अब यह कृपा का विलास है
मन की चाबी मन के पास है
सुन्दर गली सरस अनुभूति की
प्रकट करने का थोडा अभ्यास है

क्षमाशीलता बढे
विनय संग प्रेम रहे निश्छल
मीठी तान सुनाये
कृपाकी, सांवरिया प्रति पल

सारा कर्म तुम ही से
तुम ही से है सारा चिंतन
जग अपना है सारा 
तुम्हें सौंप कर अपना मन


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२ मई २००८ को लिखी
२१ मई २०११ को लोकार्पित            

1 comment:

Rakesh Kumar said...

क्षमाशीलता बढे
विनय संग प्रेम रहे निश्छल
मीती तान सुनायेकृपाकी,
सांवरिया प्रति पल
सारा कर्म तुम ही से
तुम ही से है सारा चिंतन
जग अपना है सारा
तुम्हें सौंप कर अपना मन

जब छोड़ दिया इस जीवन का सब भार तुम्हारे हाथों में
है जीत तुम्हारे हाथों में,और हार तुम्हारे हाथों में

अति सुन्दर समर्पण के भावों की प्रस्तुति से मन प्रसन्न हो गया.भाव पूर्ण अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक बधाई.