Friday, December 18, 2009


मुस्कात श्याम छवि मन मोरे
आनंद अपार खिले अद्भुत
कान्हा की प्रीत उजागर हो
लगे वसंत सी, हर एक रुत

वो जब देखे मुस्काय सखी
सुध बुध बिसरे, अच्छा लागे
ज्ञानी जन कहते, जग मिथ्या
मोरे हर एक कण, सच्चा लागे

चहुँ ओर श्याम के दरस करूँ
हर सांस सखी मैं सरस करूँ
है जहाँ प्रेम की प्यास वहां
बन श्याम बदरिया बरस पडूँ


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
(जन २५, ०५ को लिखी पंक्तियाँ
दिसम्बर १८, ०९ को लोकार्पित)

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