
मन मस्त चरण रज तक आकर
मन मस्त श्याम धुन अपना कर
आनंद सुधारस पान करे
तन्मय श्री हरी गुण गान करे
केशव की लीला है अनुपम
हर मुश्किल को आसान करे
२
चल अमृत पथ के पथिक बने
गुरु की वाणी के रसिक बने
जब सूरज स्वयम पुकारे है
क्यूं छाँव देख दिग्भ्रमित बने
चल प्रेम भाव संचार करें
हर दिन मंगल त्यौहार करे
लीला रस से होकर पावन
चल उसकी जय जयकार करें
मन मस्त श्याम धुन अपना कर
आनंद सुधारस पान करे
तन्मय श्री हरी गुण गान करे
केशव की लीला है अनुपम
हर मुश्किल को आसान करे
२
चल अमृत पथ के पथिक बने
गुरु की वाणी के रसिक बने
जब सूरज स्वयम पुकारे है
क्यूं छाँव देख दिग्भ्रमित बने
चल प्रेम भाव संचार करें
हर दिन मंगल त्यौहार करे
लीला रस से होकर पावन
चल उसकी जय जयकार करें
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१४ और १५ अक्टूबर २००८ की पंक्तियाँ दिसंबर २६, ०९ को लोकार्पित
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