Tuesday, December 22, 2009

कृष्ण प्रेम का साज


नन्द धाम चल री सखी
वहां मिलेंगे श्याम
व्याकुल नैनों को सखी
वहीं मिले विश्राम
केशव कर मुरली सजे
मुरली स्वर हैं प्राण
बडभागी है वो मनुज
जिसे कृष्ण का ध्यान


मौन तोड़ कर बोलते
वृक्ष पवन संग आज
बजा किसी के हृदय में
कृष्ण प्रेम का साज
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चित्त चंचल, शीतल हुआ
प्रेम नदी में स्नान
मधुर करे हर एक क्षण
मेरे कृष्ण भगवान

अशोक व्यास,
न्यूयार्क, अमेरिका
(फरवरी १६, ०६ को प्रकट पंक्तियाँ
दिसंबर २२, ०९ को लोकार्पित)

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