१
कृष्ण सखा संग खेलना
और ना दूजा काम
नदी, कूप, ना बावड़ी
प्यास बुझाये श्याम
२
कृष्ण करावे, सो करूँ
और ना दूजी बात
पग पग चल मनवा मोरे
श्याम सखा के साथ
३
कृष्ण बड़े गंभीर दिखे
मुख पर 'गुरुरूप' दिखाई दिया
मुस्कान किरण फूटी नन्ही
अमृत पथ शब्द सुनाई दिया
केशव करुणामय बोल गए
भव बंधन सारे खोल गए
मुख कान्हा का ही था लेकिन
उसमें जग सकल दिखाई दिया
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
(जनवरी ०५ को लिखी पंक्तियाँ दिसंबर २१, ०९ को लोकार्पित)
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