Tuesday, December 29, 2009

कान्हा कृपा कटाक्ष



उतर रहा आनंद अनूठा
मद्धम स्वर में चहके कोयल

प्रेम पराग भरे मधुकर अब
गुंजन करते पावन शीतल


इस पथ कान्हा कि आवन है
धूल दिव्य, उज्जवल सबका मन

कान्हा के दरसन की महिमा
कह ना सके जग का सारा धन


अब अपार उल्लास छिटकते
गोप सखा चल रहे उछल कर

कान्हा कृपा कटाक्ष करुण यह
बल अद्भुत देती निर्बल कर


अशोक व्यास,
न्यूयार्क, अमेरिका
(९ अगस्त २००५ को लिखी पंक्तियाँ
२९ दिसंबर २००९ को लोकार्पित)

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