
उतर रहा आनंद अनूठा
मद्धम स्वर में चहके कोयल
प्रेम पराग भरे मधुकर अब
गुंजन करते पावन शीतल
इस पथ कान्हा कि आवन है
धूल दिव्य, उज्जवल सबका मन
कान्हा के दरसन की महिमा
कह ना सके जग का सारा धन
अब अपार उल्लास छिटकते
गोप सखा चल रहे उछल कर
कान्हा कृपा कटाक्ष करुण यह
बल अद्भुत देती निर्बल कर
अशोक व्यास,
न्यूयार्क, अमेरिका
(९ अगस्त २००५ को लिखी पंक्तियाँ
२९ दिसंबर २००९ को लोकार्पित)
मद्धम स्वर में चहके कोयल
प्रेम पराग भरे मधुकर अब
गुंजन करते पावन शीतल
इस पथ कान्हा कि आवन है
धूल दिव्य, उज्जवल सबका मन
कान्हा के दरसन की महिमा
कह ना सके जग का सारा धन
अब अपार उल्लास छिटकते
गोप सखा चल रहे उछल कर
कान्हा कृपा कटाक्ष करुण यह
बल अद्भुत देती निर्बल कर
अशोक व्यास,
न्यूयार्क, अमेरिका
(९ अगस्त २००५ को लिखी पंक्तियाँ
२९ दिसंबर २००९ को लोकार्पित)
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