
कृष्ण कृष्ण भज बावरे
काहे फांके धूल
अमृत बरसे रात दिन
इसे कभी ना भूल
श्याम स्निग्ध मुस्कान से
करते नित्य निहाल
पावन, रसमय पथ सुगम
गाये जा नंदलाल
छोड़ श्याम के आसरे
साँसों के सुर ताल
सारा भय जाता रहा
मित्र हो गया काल
अपनी करनी कुछ नहीं
भजूं श्याम दिन रात
श्रवण कीर्तन हो रहा
बैठ कृष्ण के साथ
अशोक व्यास
न्यू यार्क, अमेरिका
दिसंबर १६, ०९ बुधवार
(२३ फरवरी २००५ को लिखी पंक्तियाँ आज लोकार्पित)
काहे फांके धूल
अमृत बरसे रात दिन
इसे कभी ना भूल
श्याम स्निग्ध मुस्कान से
करते नित्य निहाल
पावन, रसमय पथ सुगम
गाये जा नंदलाल
छोड़ श्याम के आसरे
साँसों के सुर ताल
सारा भय जाता रहा
मित्र हो गया काल
अपनी करनी कुछ नहीं
भजूं श्याम दिन रात
श्रवण कीर्तन हो रहा
बैठ कृष्ण के साथ
अशोक व्यास
न्यू यार्क, अमेरिका
दिसंबर १६, ०९ बुधवार
(२३ फरवरी २००५ को लिखी पंक्तियाँ आज लोकार्पित)
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