Monday, December 14, 2009

सरस सुधा


प्रेम गीत बन जाए जीवन
साँस साँस सुरभित वृन्दावन

सरस सुधा शाश्वत सांसों में
बहूँ लिए निश्छल अपनापन

केशव करुण देकर ज्ञानांजन
छुड़ा रहे हैं सब भाव बंधन

सब विचार कान्हा को अर्पण
प्रेम गीत बन जाए जीवन

अशोक व्यास, न्यू योर्क
(जून , ०८ को लिखी पंक्तियाँ, लोकार्पण दिसम्बर १४, ०९)

No comments: