
प्रेम गीत बन जाए जीवन
साँस साँस सुरभित वृन्दावन
सरस सुधा शाश्वत सांसों में
बहूँ लिए निश्छल अपनापन
केशव करुण देकर ज्ञानांजन
छुड़ा रहे हैं सब भाव बंधन
सब विचार कान्हा को अर्पण
प्रेम गीत बन जाए जीवन
अशोक व्यास, न्यू योर्क
(जून १, ०८ को लिखी पंक्तियाँ, लोकार्पण दिसम्बर १४, ०९)
साँस साँस सुरभित वृन्दावन
सरस सुधा शाश्वत सांसों में
बहूँ लिए निश्छल अपनापन
केशव करुण देकर ज्ञानांजन
छुड़ा रहे हैं सब भाव बंधन
सब विचार कान्हा को अर्पण
प्रेम गीत बन जाए जीवन
अशोक व्यास, न्यू योर्क
(जून १, ०८ को लिखी पंक्तियाँ, लोकार्पण दिसम्बर १४, ०९)
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