Saturday, December 12, 2009

मिले तो मंगल


कान्हा संग नौका विहार है
जीवन का सम्पूर्ण सार है
चाहे जो नदिया के पार है
नहीं उतरना अबकी बार है


बंशीधर छवि सब कुछ वारुं
जो कुछ जीता, वो सब हारूं
मिले तो मंगल, छुपे तो है छल
बस केशव की बाट निहारुं

ध्यान धरूँ पर कुछ न पुकारूँ
सुन्दरतम को और संवारूं
छूकर मैला करूँ न उसको
सिर्फ़ श्याम की छवि निहारूं


अशोक व्यास
न्यूयोर्क, अमेरिका
(जन १४, ०८ को लिखी पंक्तियाँ, लोकार्पण दिवस- शनिवार, दिसम्बर १२, ०९)

No comments: